मंदिर के बहाने मिले गांव के लोग, फिर थापली गांव की रौनक लौटने की आस
थापली गांव एक बड़े परिवार के रहने वाले लोगों का गांव, इस गांव से लोग बहुत ही शिक्षित जर्नल, कर्नल और ब्रिगेडियर जैसे पदों पर आसीन रहे हैं। लेकिन गांव की ओर किसी ने चढ़ने का साहस नहीं दिखाया। अब गांव में मात्र चार से पांच परिवार ही रह गए हैं। बता दें कि यहां पर ग़रीबी और बेबसी का पलायन नहीं हुआ है। राजकीय इंटर कॉलेज जखेटी के थापली गांव में नवनिर्मित मंदिर में विराजमान हुए भैरव बाबा मंदिर समिति के अध्यक्ष ने बताया कि मंदिर का निर्माण नवरात्र के शुभ अवसर पर शुरू किया गया था। मंदिर बनाने में गांव के सभी लोगों के सहयोग से निर्माण कार्य पूरा हो पाया है इस अवसर पर गांव के लोगों ने पारंम्परिक वेशभूषा में गढ़वाली गीतों के साथ नृत्य और अपने देवी देवताओं के गुणगान के साथ भंडारा आयोजित किया। जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने प्रसाद लिया। इस अवसर पर समीति के अध्यक्ष श्रीधर प्रसाद नैथानी ने कहा कि आयोजित कार्यक्रम में दिल्ली, देहरादून, कोटद्वार, नोएडा, श्रीनगर, पौड़ी आदि जगहों से लोग पहुंचे हैं। मंदिर समिति में अध्यक्ष श्रीधर प्रसाद नैथानी, उपाध्यक्ष, शिव प्रसाद थपलियाल और मीडिया प्रभारी अतुल थपलियाल मौजूद रहे।
मंदिर के बहाने वर्षों बाद मिले गांव के लोग एक, दूसरे से और गांवों से हो रहे पलायन पर भी चर्चा की, साथ ही गांव में रहने के लिए अपने टूटे घरों को बनाने पर जोर दिया गया। कहीं न कहीं मंदिर बनाने के बहाने लोग एकजुट हुए और मंदिर निर्माण करवाया। मंदिर जो आसपास के गांव के लोगों को भी आकर्षित कर रहा है कभी इस गांव में एक हजार से अधिक परिवार रहते थे और आज 4 से 5 ही रह गए हैं। बाकी सभी लोग गांव छोड़ चुके हैं। आज बदलते हालात और चकाचौंध से भरी दुनिया में आगे बढ़ने और नये सपनों को साकार करने के की दौड़ में जिसमें हमने अपने समाज घर परिवार, दोस्त, रिस्ते नाते दोस्ती और जल जंगल जमीनों से मुंह मोड़ लिया है गांव खाली हो गए हैं दरवाजों पर ताले लटक रहे हैं खाली पड़े आंगन में घास उगी हुई है लेकिन अब थापली गांव के लोगों ने खाली पड़े गांव को फिर से बसाने का मन बनाया है। पानी और स्वास्थ्य सेवाएं बना पलायन का मुख्य मुद्दा। गांव की याद आई तो कोविड के दौरान जब लगा लाकडाउन ? इस दौरान पहाड़ के लोगों ने अपने घर गांव वापसी की और अपना कुछ न कुछ स्वरोजगार शुरू किया और गांव में ही रुके वहीं थापली गांव में ऐसा कुछ नहीं हो पाया। क्योंकि पानी और स्वास्थ्य की चिंता आज भी उनके पांव थामें बैठी है। आज भी गिनती के कुछ ही परिवार हैं। जो आस लगाए बैठे हैं कि कोई न कोई कभी तो आयेगा। और फिर से गांव की रोंनक फिर लोटेगी।