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हर निर्णय ईमानदारी व साहस के साथ करें: जस्टिस धूलिया

ग्राफिक एरा में आयोजित समारोह में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश  सुधांशु धूलिया ने कहा कि भारतीय संविधान सिर्फ संविधान नहीं एकता और अखंडता का प्रतीक है। उन्होंने युवाओं को जिंदगी में हर निर्णय र्ईमानदारी और साहस के साथ करने का मंत्र दिया।

जस्टिस धूलिया आज ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के सिल्वर जुबली कन्वेंशन सेंटर में आयोजित  समारोह को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे। न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह भारत की आत्मा और लोकतांत्रिक व्यवस्था का आधार है। उन्होंने अनुच्छेद 14 का उल्लेख करते हुए कहा कि यह प्रत्येक व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता का अधिकार देता है, जो सामाजिक न्याय की नींव है। कई उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि संविधान में समानता को मशीनी तरीके से नहीं, बल्कि सामाजिक  व व्यवहारिक रूप से स्थान दिया गया है।

उन्होंने कहा कि केवल अपने अधिकारों को जानना पर्याप्त नहीं है,  बल्कि कर्तव्यों की समझ और संविधान के मूल्यों का सम्मान भी आवश्यक है। जीवन में कोई भी निर्णय लेते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि वे फैसले ईमानदारी और साहस के साथ किये जायें, ताकि वे सही हों।  उन्होंने सहिष्णुता और सांस्कृतिक विविधता को भारतीय लोकतंत्र की ताकत बताते हुए युवाओं से  संविधान का गहन अध्ययन करने और जिम्मेदार नागरिक बनने की आह्वान किया।

न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि राज्य के नीति निदेशक तत्व संविधान के ऐसे मार्गदर्शक सिद्धांत हैं,  जो सरकार को समाज के हर वर्ग के कल्याण हेतु प्रेरित करते हैं। ये सिद्धांत आर्थिक और सामाजिक न्याय की स्थापना में अहम भूमिका निभाते हैं। जस्टिस धूलिया ने कहा कि हमारा संविधान इसलिए भी अलग है कि हमने इसे कहीं से लिया नहीं, बल्कि स्वतंत्रता सेनानियों, स्कॉलर्स, वकीलों, पत्रकारों और नेताओं ने हर बिंदु पर विस्तार से विचार विमर्श करने के बाद इसे तैयार किया है। उन्होंने कहा कि संविधान की जानकारी हर नागरिक को होनी चाहिए। न्यायमूर्ति धूलिया ने भारतीय संविधान की मूल भावना,  विशेष रूप से अनुच्छेद 14, समानता,  सहिष्णुता,  मूल्य आधारित समाज और राज्य के नीति निदेशक तत्वों पर विस्तार से प्रकाश डाला।

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश धूलिया ने कहा कि भारत दूसरे देशों से इसलिए भी भिन्न है क्योंकि यह विविधताओं का देश है। जहां हर 100 किलोमीटर बाद भाषा, खानपान, पहनावा बदलता है, इसके  बावजूद एकता बनी हुई है। यह एकता संविधान से मिली है। हमारा संविधान इसलिए भी अनुपम है क्योंकि इसमें मानवीय गरिमा को स्थान दिया गया है। मानवीय गरिमा को साहित्य, कविताओं और सिनेमा के जरिये समझा जा सकता है। उन्होंने दुनिया के अनेक विद्वानों के वक्तव्यों का उल्लेख करते हुए युवाओं को मानवीय गरिमा, मूल्यों और आचरण के प्रति सजग किया।

उन्होंने ग्राफिक एरा ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन डॉ. कमल घनशाला के शिक्षा जगत में अभूतपूर्व  योगदान की सराहना करते हुए कहा कि ग्राफिक एरा आज एक विशाल वृक्ष के समान है, जो समाज को ज्ञान,  नवाचार और अनुशासन के रूप में फल दे रहा है। न्यायमूर्ति धूलिया ने उर्दू लेखिका फहमीदा रियाज की पंक्तियां भी सुनाईं – कुछ लोग तुम्हें समझाएंगे, वो तुमको खौफ दिखाएंगे, जो है वो भी खो सकता है, इस राह में रहजन हैं इतने, कुछ और यहां हो सकता है, कुछ और तो अक्सर होता है, पर तुम जिस लम्हे में जिंदा हो, ये लम्हा तुम से जिंदा है, ये वक्त नहीं फिर आएगा, तुम अपनी करनी कर गुजरो, जो होगा देखा जाएगा…।

इससे पहले, ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी पहुंचने पर ग्राफिक एरा ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन डॉ. कमल घनशाला ने जस्टिस सुधांशु धूलिया का स्वागत किया। समारोह में प्रो चांसलर डॉ राकेश कुमार शर्मा ने विश्वविद्यालय की गतिविधियों और उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ग्राफिक एरा में उच्च गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ ही छात्र छात्राओं को सामाजिक न्याय, मूल्यों और महिला सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। ग्राफिक एरा के स्कूल ऑफ लॉ की डीन डॉ डेजी एलेक्जेंडर ने न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया के जीवन वृत पर प्रकाश डाला। प्रोवीसी प्रोफेसर संतोष एस. सर्राफ ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कुलपति डॉ नरपिंदर सिंह, लेबर कोर्ट की पीठासीन अधिकारी श्रीमती कहकशां खान, हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री बी पी नौटियाल, एसडीएम श्री हरिगिरि, संयुक्त निदेशक अभियोजन जी सी पंचोली, कुलसचिव डॉ नरेश कुमार शर्मा समेत कई पदाधिकारी, शिक्षक और छात्र छात्राएं समारोह में शामिल हुए। संचालन डॉ एम पी सिंह ने किया।